क्या पिता के संपत्ति में शादीशुदा बेटी का भी हिस्सा है यह कि नहीं सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जानकारी दी, Supreme Court Decision

Supreme Court Decision : सर्वोच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के कृषि भूमि उत्तराधिकार कानून में विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव के मामले में गंभीर संज्ञान लिया है मुख्य न्यायाधीश चंद्र टूट की अध्यक्षता वाली स्पीड ने इस संबंध में दायर की गई जनहित याचिका पर केंद्र सरकार था उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को नोटिस भेजा है.

या मामला महिलाओं के मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है जिसमें कई महत्वपूर्ण कानून पहलू पर विचार विमर्श किया गया.

विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव का मुद्दा या नजरिया

Supreme Court Decision: उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 और उत्तराखंड भूमि कानून के प्रावधानों को चुनौती दी गई है जो महिलाओं को सम्मान उत्तर अधिकारी से वंचित कर रहे हैं इस कानून के अनुसार अविवाहित बेटियों को प्राथमिकता दी जाती है और विवाहित महिलाओं को कृषि भूमि के उत्तराधिकारी से वंचित रखा जाता है याचिका में तर्क किया गया है कि यह भेदभाव भारतीय संविदा के अनुच्छेद 14 तथा 15 के उल्लंघन में शामिल है जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करते हैं.

धारा 108 तथा 110 के प्रधानों में प्रावधानों में अविवाहित बेटियों को प्राथमिकता दी गई है जबकि विवाहित महिलाओं को उत्तराधिकारी से वंचित किया जा रहा है इन प्रावधानों के अनुसार अविवाहित पुत्री माता-पिता की भूमि की उत्तराधिकारी बनेगी तथा विवाहित पुत्री को कृषि भूमि में उत्तर अधिकारी का कोई अधिकार प्राप्त नहीं रहेगा इस बात पर भी जोड़ दिया गया है कि विवाहित किसी महिला के उत्तराधिकारी के अधिकारों को समाप्त करने का आधार नहीं होना चाहिए.

पुनर्विवाह पर अधिकारों का समापन किया जा सकता है

Supreme Court Decision : इस कानून का एक और दिलचस्प पहलू विवादित पद रूप से सामने आया है की विधवा द्वारा पुनर्विवाह करने पर उसके कृषि भूमि के अधिकार समाप्त हो जाते हैं क्या राजस्व संहिता की धारा 110 के अंतर्गत किसी विधवा का पुनर्विवाह उसकी भूमि पर अधिकार समाप्त कर देता है संवैधानिक अधिकारों को स्पष्ट उल्लंघन और असंवैधानिक है.

ठीक इसी प्रकार से धारा प्रश्नों में कहा गया है कि कोई महिला यदि कृषि भूमि में उत्तराधिकारी बनने के बाद पुनर विवाह करती है तो उसका अधिकार भी कृषि भूमि से अधिकतर पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा पुरुषों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है जो स्पष्ट रूप से लिंग के आधार पर भेदभाव का मामला स्पष्ट करता है.

महिलाओं और पुरुषों के अधिकारों से असमानता की भेदभाव

Supreme Court Decision : कहा जाता है कि यज्ञ में तर्ज दिया गया है वर्तमान कानून में पुरुष तथा महिला के अधिकारों के बीच स्पष्ट असमानता देखने को मिलती है पुरुष के विवाह होने पर उत्तराधिकार में प्राप्त हुई कृषि भूमि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है जबकि पुत्री के विवाह पर भूमि का स्वामित्व ही उसका समाप्त हो जाता है यह द्वारा मापदंड महिलाओं की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों पर अतिक्रमण का नजरिया है.

इसके अलावा कोई महिला अपने पति की कृषि भूत अधिकारी बनती है और उसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है तो वह भूमि महिला के अपने परिवार के सदस्यों के बजाय पति के परिवार को उत्तराधिकार में प्राप्त हो जाती है यह प्रावधान भी महिलाओं के अधिकारों को हनन करने का रूप दिखाता है और उनके परिवार के सदस्यों को उनकी संपत्ति से वंचित किया जाता है.

महिलाओं के वंचित होने का भूमि से मामला

जब महिला इस बात पर जोर देती है कि क्या विवाह का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे उत्तराधिकार के अधिकारों के साथ नहीं जाना चाहिए किसी व्यक्ति के विवाह की स्थिति का उसके संपत्ति के अधिकारों पर प्रभाव नहीं पादना चाहिए होगा विशेष रूप से जब वह प्रभाव केवल एक विशेष लिंग तक ही सीमित रहता है

सर्वोच्च न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण मामले पर संज्ञान देते हुए केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों से जवाब भी मांगा है अगला सुनवाई में इस बात पर भी काफी विस्तृत रूप में चर्चा होने की संभावना है या मामला न केवल भूमि कृषि भूमि के उत्तराधिकारी से जुड़ा हुआ है बल्कि यह महिलाओं के सम्मान के अधिकार तथा स्वतंत्रता और गरिमा से भी संबंध माना गया है.

आपकी इसके बारे में क्या राय है आप में जरूर कमेंट करके बताइएगा और ऐसे ही जानकारी के लिए आप हमारे साथ बने रहिए और मैं आपको एक और जानकारी देना चाहूंगा कि हम आपके लिए हर दिन नई-नई जानकारी आपके साथ शेयर करते हैं तो आप में फॉलो भी कर ले.

अस्वीकरण: यह सूचना के बाल लेखन सूचनात्मक उद्देश्य के लिए लिखा गया है कानून यह विशेषज्ञों से इसके बारे में जरूर संपर्क करें. धन्यवाद!

Leave a Comment